नेकी की सज़ा (Neki Ki Sazza) – हिंदी कहानी

Neki Ki Sazza - Hindi Kahaniya

एक छोटे से गाँव में एक बहुत ही साधारण और भोला-भाला सा लकड़ी का कारीगर, साधुराम, अपनी पत्नी सुलेखा और अपनी एक छोटी सी बेटी मोहिनी के साथ रहता था। साधुराम बहुत ही मेहनती और एक ईमानदार आदमी था। वह हमेशा दूसरों की मदद और दूसरों का भला करने के लिए तत्पर रहता था। उसके गाँव में उसकी सादगी, भोलापन और निस्वार्थता के लिए सभी गाँव वाले उसे बहुत मानते थे।

फिर एक दिन, गाँव में एक बड़े मेले का आयोजन हुआ। गाँव के सभी लोग बहुत समय से उस मेले का इंतज़ार कर रहे थे। साधुराम ने सोचा कि इस बार वह भी अपने परिवार के लिए मेले में कुछ खास करके जाएगा। उसने अपनी बचत करके कुछ पैसे जमा किए और अपनी पत्नी सुलेखा से कहा, “मैं मेले में कुछ मिठाइयाँ और खिलौने खरीदने जा रहा हूँ। बेटी मोहिनी को खुश देखकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”

सुलेखा ने मुस्कराते हुए कहा, “ठीक है जी, लेकिन आप याद रखना, हमें हमेशा अपने दिल की सुननी चाहिए।”

साधुराम जैसे ही मेले में पहुंचा तो सबसे पहले जाकर मिठाइयाँ खरीदीं और मोहिनी के लिए एक खूबसूरत गुड़िया भी ली। लेकिन घर वापिस लौटते वक्त, साधुराम को रास्ते में एक बहुत ही बूढ़ी महिला मिली, जो कि एक पेड़ के नीचे बैठी थी और उसकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं।

“बेटा, ज़रा सुनो मुझे सुबह से अभी तक खाने के लिए कुछ भी मिल नहीं रहा है। कृपया करके मेरी मदद करो,” उसने साधुराम से कहा।

साधुराम ने बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जेब में से कुछ पैसे निकले और उस बूढी महिला को दे दिए। “आप खाना खा लें। मैं तो घर ही जा रहा हूँ बाद में घर जाकर कुछ और खा लूँगा।”

उस बूढ़ी महिला ने साधुराम को धन्यवाद कहा और बोली, “बेटा तुम्हारी नेकदिली का फल तो तुम्हें अवश्य ही मिलेगा, परन्तु याद रखना कभी-कभी जीवन में नेकी की सज़ा भी मिलती है।”

साधुराम ने इसे एक साधारण बात समझा और वह वहाँ से चला गया। क्योंकि साधुराम तो अपनी बेटी के चेहरे पर एक खुशी कि झलक देखने के लिए बेचैन हो रहा था। लेकिन जैसे ही वह घर पहुँचा, उसे अपनी पत्नी से पता चला कि मोहिनी तो तेज़ बुखार में तप रही है। सुलेखा बहुत परेशान थी।

साधुराम ने तुरंत ही गाँव के एक अच्छे से डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने उनके घर आकर मोहिनी की जाँच की और उनसे कहा, “आपकी बच्ची को तुरंत दवा की जरूरत है, लेकिन यह दवा बहुत महँगी है। क्या तुम्हारे पास दवा के लिए पैसे हैं?”

साधुराम के पास तो अब पैसे भी नहीं बचे थे। उसने सोचा कि अगर उसने उस वक़्त बूढ़ी महिला को वह पैसे ना दिए होते, तो इस समय उसके पास पैसे होते। जिससे की वह खुद को कोसने लगा और उसे अपने ऊपर गुस्सा आने लगा।

“अब मैं क्या करूँ?” उसने सुलेखा से कहा।

सुलेखा, “चलो अपना अन्न कहीं बेच देते हैं।”

साधुराम ने अपना कुछ अनाज बेच दिया और अब दवा खरीदने के लिए वह गाँव के बाजार की ओर तेज़ी से दौड़ पड़ा। लेकिन बाजार जाते हुए रास्ते में उसे फिर से वही बूढ़ी महिला मिल गई जो पहले मिली थी।

“बेटा, पैसे देने आए हो न ? क्या तुम कुछ खा कर आए हो ?”

साधुराम ने दुःख भरी आवाज़ में कहा, “माई मेरे पास अब पैसे नहीं हैं, मेरी पत्नी ने अनाज बेचा है ताकि मैं अपनी बीमार बेटी की दवा खरीद सकूँ बाजार जा कर।”

वह बूढ़ी महिला ने साधुराम को देखा और मुस्कुराते हुए बोली। “बेटा तुम सच में बहुत नेक हो, लेकिन नेकी की सज़ा भी होती है। जब तुम्हारी बेटी ठीक होगी, तभी तुम्हें इसका फल भी मिलेगा।”

उस समय तो साधुराम को उस बूढ़ी माई की यह बात समझ में नहीं आई, लेकिन उसने उन्हें धन्यवाद कहा और फिर वह आगे बढ़ गया।

घर वापस आकर, उसने पत्नी सुलेखा को दवा पकड़ाई और बेटी मोहिनी को दवा देने लगा। धीरे-धीरे मोहिनी की तबियत सुधरने लगी, लेकिन फिर भी वह पूरी रात तेज़ बुखार से तपती रही। साधुराम और सुलेखा ने उसकी पूरी रात देखभाल की, लेकिन अंततः साधुराम थक गया।

अगली सुबह, जब साधुराम की आँख खुली, तो उसने देखा की मोहिनी सो रही है और उसकी तबियत भी अब पहले से ठीक है। वो यह देख कर बहुत खुश हुआ। लेकिन साधुराम की खुशी जल्द ही धूमिल हो गई।

गाँव में एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। वहां का तालाब एक दम सूख गया था, और गाँव के सभी लोग पानी की इस कमी से बहुत परेशान थे। अब सभी गाँव वालों ने साधुराम से मदद माँगी।

तब साधुराम ने सोचा, “मैं अपने खेत का पानी गाँव के तालाब में छोड़ सकता हूँ। इससे गाँव के लोगों को पानी मिल सकेगा।” उसने ऐसा ही किया और अपने खेत के सभी नल खोल दिए और तालाब की तरफ पानी छोड़ दिया।

साधुराम की इस मदद को देखते हुए गाँव के सभी लोग बहुत खुश हुए और साधुराम को धन्यवाद देने लगे। लेकिन जैसे ही साधुराम ने यह कार्य किया, कुछ समय बाद ही उसकी फसल सूखने लगी। साधुराम को यह समझ में नहीं आया कि यह सब क्यों हो रहा है।

तभी गाँव के एक पंडित जी ने कहा, “साधुराम तुमने नेकी की है, लेकिन तुम्हारी नेकी का फल तुम्हें नहीं मिला है। इसका कारण है, तुम्हारा खुद का नुकसान होना।”

साधुराम ने सोचा, “यह क्या है? मैं तो बस सिर्फ दूसरों की मदद ही कर रहा था।”

फिर, साधुराम ने एक निर्णय लिया की अब वह अपनी फसल की भी देखभाल करेगा। उसने अपनी सारी मेहनत फिर से लगाई और अपना दिन रात एक कर दिया और फिर अपने खेत को हरा-भरा करने का प्रयास किया। धीरे-धीरे, उसकी मेहनत और फसल लहलहाने लगी।

इस बार, साधुराम ने सोचा, “कि दूसरों की मदद करना बहुत अच्छी बात है मगर मैं दूसरों की मदद करते हुए अपनी और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को कभी नहीं भूल सकता।”

अब गाँव वाले भी साधुराम की मेहनत को देखकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने भी साधुराम से प्रेरणा लेकर अपनी अपनी जिम्मेदारियाँ समझीं। और फिर एक बार, गाँव में पानी की समस्या भी हल हो गई।

साधुराम ने इस बात से यह सीखा की नेकी करना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन अपनी और अपने परिवार की देखभाल करना भी आवश्यक है। इस तरह से, उसने नेकी की सज़ा को समझा और पूरे गाँव में एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया।

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