मिलते रहो दोस्तों से!
प्रिय दोस्तों, यह कहानी स्कूल के चार बहुत करीबी दोस्तों की है जो आपकी आँखें नम कर देने वाली कहानी है। जिन्होंने किसी समय पर एक ही स्कूल में कक्षा बारवीं तक पढ़ाई की है और अब वह समय आ गया है जब इन्हें अपने अपने रास्ते अलग करने होंगे, अपने जीवन में कुछ मुकाम हासिल करने के लिए।
उस समय उस शहर में एक ही इकलौता लग्ज़री या कहें कि जाना माना होटल था।
कक्षा बारवीं की परीक्षा के बाद उन चारों दोस्तों ने तय किया कि हमें उस होटल में जाकर कुछ खाना पीना करना चाहिए। क्योंकि अब हम पता नहीं जीवन में कब मिलेंगे और कब अपनी मुलाकात हो पाएगी।
अब उन चारों ने बड़ी ही मुश्किल से चालीस रुपये जमा किए, और वह रविवार का दिन था। सुबह साढ़े ग्यारह बजे वे चारों अपनी अपनी साइकिल से होटल पहुँच गए।
नन्दराम, जयपाल, राम किशोर और रविशंकर चाय-नाश्ता करते हुए बातें करने लगे और बातों ही बातों में उनके मन में यह ख्याल आया और उन चारों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि आज से तीस साल के बाद हम 01 अप्रैल को इस होटल में इसी जगह पर फिर मिलेंगे।
तब तक हम सभी को बहुत ज्यादा मेहनत करनी चाहिए, और यह देखना भी दिलचस्प होगा कि किसकी कितनी प्रगति हुई है और कौन अपने जीवन में कितना बड़ा व्यक्ति बना।
और साथ ही साथ यह भी निर्णय लिया गया कि जो भी दोस्त उस दिन सबसे बाद में होटल पहुंचेगा उसे उस समय या उस दिन का होटल का पूरा बिल देना होगा। अब इस बात पर चारों दोस्त तैयार हो गए।
अब वहां उनको खाना परोसने वाला वेटर जिसका नाम राजू था वह उनकी सब बातें सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं तब तक यहाँ रहा, तो मैं इस होटल में आप सब का इंतज़ार करूँगा।
आगे की शिक्षा और काम करने के लिए चारों अलग-अलग हो गए।
नन्दराम शहर छोड़कर आगे की पढ़ाई के लिए अपने मामा के पास चला गया, जबकि जयपाल आगे की शिक्षा के लिए अपने रिश्तेदार के पास चला गया। राम किशोर और रविशंकर को भी शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिल गया और फिर वह भी अपनी मंजिल के तलाश में चल दिए।
और फिर इसी तरह से दिन, महीने, और फिर साल बीतते चले गए।
अगले तीस वर्षों में उस शहर में आमूल-चूल परिवर्तन आया, और शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों और फ्लाईओवर ने महानगरों की सूरत बदल दी। और अब यह शहर पहचान में नहीं रहा था जहाँ से वह चारों दोस्त गए थे।
इतने लम्बे समय में अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, और वह वेटर राजू अब राजू सेठ बन गया और इस होटल का मालिक भी बन गया था।
फिर जैसा कि उन्होंने ने तय किया था तीस साल बाद, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल को दोपहर में, एक बड़ी लम्बी सी कार होटल के दरवाजे पर आई।
नन्दराम कार से उतरा और होटल के गेट की ओर अंदर जाने के लिए चलने लगा, नन्दराम एक बड़ा आदमी बन गया था और उसके पास अब तीन कारखाने हैं।
नन्दराम होटल के मालिक राजू सेठ के पास पहुँचा, और दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया और एक दूसरे को देखते रहे।
राजू सेठ ने कहा कि रविशंकर सर ने आपके लिए एक महीने पहले एक टेबल बुक किया था।
नन्दराम मन ही मन बहुत खुश था कि वह चारों दोस्तों में से होटल आने वाला पहला दोस्त था, इसलिए उसे आज होटल का बिल नहीं देना पड़ेगा, और वह सबसे पहले आने के लिए अपने दोस्तों का मज़ाक भी उड़ाएगा।
करीब एक घंटे में वहां पर एक और लम्बी सी गाडी आई और देखा तो जयपाल वहां पर आ गया, जयपाल शहर का अब बड़ा राजनेता व बिजनेस मैन बन गया था। अपनी उम्र के हिसाब से वह अब एक सीनियर सिटिज़न की तरह लग रहा था।
अब दोनों दोस्त एक दूसरे को देख कर और मिल कर बहुत खुश हुए और अपनी बातें कर रहे थे और साथ ही दूसरे मित्रों का इंतज़ार कर रहे थे, और बस इतनी ही देर में तीसरा मित्र राम किशोर आधे घंटे में वहीँ पर आ गया।
वह दोनों उससे मिले और उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि राम किशोर भी अब एक बड़ा बिज़नेसमैन बन गया है।
अब तीनों मित्रों में खूब बातें हुई और बहुत हंसी मजाक हो रहा था लेकिन सबकी आँखें बार-बार दरवाजे पर जा रही थीं, कि हमारा चौथा दोस्त रविशंकर कब आएगा ?
इतनी देर में वहां आकर राजू सेठ ने कहा कि रविशंकर सर की ओर से एक सन्देश आया है, कि तुम लोग चाय-नाश्ता शुरू करो, मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ।
तीनों तीस साल बाद एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे और अपने अपने परिवार कि बातें एक दूसरे को बता रहे थे।
कई घंटों तक मजाक चलता रहा, लेकिन रविशंकर वहां पर नहीं आया।
राजू सेठ ने कहा कि फिर से रविशंकर सर का मैसेज आया है, कि आप तीनों अपना मनपसंद का खाना लें और आप खाना शुरू करें।
अब सभी ने खाना भी खा लिया तो भी रविशंकर नहीं दिखा, बिल माँगते ही उन तीनों को जवाब मिला कि आपके खाने का बिल ऑनलाइन दे दिया गया है। अब तीनो दोस्त एक दूसरे को देखने लगे और बहुत ही हैरान भी हुए कि यह क्या हो रहा है।
शाम के सात बजे एक नौजवान युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुँचा, और वह तीनों उस नौजवान युवक को देखते ही रह गए।
युवक कहने लगा, कि मैं आपके दोस्त का बेटा शंकरनाथ हूँ, और मेरे पिता जी का नाम रविशंकर है।
पिता जी ने मुझे आज आपके आने के बारे में बताया था, उन्हें इस दिन का बहुत बेसब्री से इंतजार था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।
उन्होंने ही मुझे आप सभी से देर से मिलने के लिए कहा था, कि अगर मैं जल्दी निकल गया, तो वे दुखी होंगे, क्योंकि मेरे दोस्त तब नहीं हँसेंगे, जब उन्हें पता चलेगा कि मैं अब इस दुनिया में नहीं हूँ, तो वे एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे और ऐसा मैं नहीं चाहता कि इतने समय के बाद मिलकर वह सब दुखी हों।
इसलिए मेरे पिता जी ने मुझे यहाँ पर देर से आने का आदेश दिया था।
उन्होंने मुझे उनकी ओर से आप सभी को गले लगाने के लिए भी कहा था, शंकरनाथ ने ऐसा कह कर अपने दोनों हाथ फैला दिए।
होटल में उस वक़्त आसपास के सभी लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, और उन्हें लगा कि उन्होंने शंकरनाथ को कहीं देखा है।
शंकरनाथ ने कहा कि मेरे पिता जी शिक्षक बने, और उन्होंने मुझे पढ़ा लिखा कर एक कलेक्टर बनाया, और आज मैं उनकी बदौलत ही इस शहर का कलेक्टर हूँ। मुझे अपने पिता जी पर बहुत गर्व है।
सब एक दम चकित थे, राजू सेठ ने कहा कि अब तीस साल के बाद नहीं, बल्कि हर तीस दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी तरफ से एक भव्य पार्टी होगी जिसमें मैं आप सभी को आमंत्रित करता हूँ।
कहानी का सार –
अपने दोस्त-मित्रों व सगे-सम्बन्धियों से जब भी वक़्त मिले तो मिलते रहो, अपनों से मिलने के लिए बरसों का इंतज़ार मत करो, न जाने कब और किसकी हमेशा के लिए बिछड़ने की बारी आ जाए और हमें पता ही न चले।
शायद यही हाल आज हमारा भी है। हम अपने व्यस्त जीवन में से कुछ दोस्तों को सुप्रभात, शुभरात्रि आदि का मैसेज भेज कर अपने ज़िंदा रहने का प्रमाण देते हैं।
दोस्तों, हमारी ज़िंदगी भी ट्रेन की तरह है जिसका जब स्टेशन आएगा, वह उतर जाएगा। और अगर कुछ रहेगा तो बस रह जाती हैं सिर्फ धुंधली सी यादें।
हमेशा परिवार के साथ रहें या मिलते जुलते रहे, ज़िन्दा होने की खुशी हर पल महसूस करें।
सिर्फ होली या दीपावली के दिन ही नहीं अन्य सभी अवसरों तथा दिन प्रतिदिन मिलने पर भी एक दूसरे को गले से लगाया करें, आपकी मित्रता प्रगाढ़ हो जाएगी।
दोस्तों की कहानी बहुत ही ज्यादा अच्छी लगी, बहुत ही ज्यादा बेहतरीन कहानी लगी आपकी वेबसाइट की.
ऋषि जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।