अभी अभी तो आए हो – प्रेरणादायक कहानी

यह कहानी केशव और उसके पिता जी की है। केशव गांव से बाहर रहता था और उसके पिता जी अपने गांव में ही रहते थे। वह कुछ दिनों की छुट्टी लेकर अपने घर गांव में आया हुआ था ताकि परिवार के साथ कुछ समय बिता सके।
केशव का मन बहुत ही दुखी था। क्योंकि सुबह-सुबह ही उसने देखा कि उसके पिता जी बगीचे में उदास बैठे हुए थे। उनके पास में कुछ सूखे फूल पड़े हुए थे, जो केशव के पिता जी ने कल ही लगाये थे। केशव ने पिता से पूछा, “पिता जी, आखिर आप इतने उदास क्यों हो?”
पिता ने सिर झुकाकर कहा, “बिल्कुल ठीक कह रहे हो बेटा। देखो ना, हमारा बगीचा एक दम सूख गया है। मेरे ही हाथों से यह सब बर्बाद हो गया।”
केशव अपने पिता के पास बैठ गया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने खुद को रोने से रोका। वह जानता था कि पिता का मन हमेशा दूसरों की परेशानी में घिरा रहता था। वह खामोश था, क्योंकि पिता को हमेशा खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता थी।
वह अपने पिता से हमेशा कुछ ना कुछ सीखता रहता था, और यही कारण था कि उसने फैसला किया कि वह इस बार पिता के दुख को दूर करेगा। केशव ने एक अच्छा सा विचार किया कि किस तरह से वह अपने प्यारे पिता जी को खुशियां देगा। अगले ही दिन सुबह-सुबह उसने पिता के लिए बगीचे में नए फूल और पौधे लाकर लगा दिए। उसने छोटे-छोटे पौधे भी लाकर बगीचे में लगा दिए, ताकि कुछ समय बाद ये पूरी तरह से खिल सकें।
केशव ने यह काम अपने पिता जी से छुपकर किया था। जब उसके पिता अगले दिन बगीचे में आए, तो उनकी आँखों में हैरानी और खुशी के आँसू थे। “तुमने ये सब कैसे किया?” पिता ने सवाल किया।
केशव हल्का सा मुस्कुराया और बोला, “पिता जी, आप अभी-अभी तो आए हो, लेकिन मेरा दिल कहता है कि यह बगीचा फिर से खिलेगा, और आपके मन की उदासी भी दूर हो जाएगी।”
पिता ने अपने बेटे केशव को गले से लगा लिया। उन्हें समझ में आ गया था कि अब उनका होनहार बेटा छोटा नहीं रहा बड़ा और समझदार हो गया है, और उसे इस तरह से खुद अपने तरीके से समस्याओं का हल निकालने की शक्ति मिल गई थी।
पिता ने धीरे-धीरे कहा, “बिल्कुल बेटा, तुम सही कह रहे हो। जब तक हम जीवन में नए रास्ते देखते और अपनाते हैं, तब हम आगे बढ़ सकते हैं। मुझे अब लगता है कि हमें हमेशा हर समस्या का सामना उम्मीद और धैर्य से करना चाहिए।”
केशव और पिता ने बगीचे में बैठकर एक नया जीवन शुरू करने का निर्णय लिया। इस नए सफर में उन्होंने उम्मीद, साहस और एक-दूसरे का समर्थन अपने साथ रखा।
देखते ही देखते बगीचा हरा-भरा हो गया, और एक नया उत्साह और उमंग घर में फैलने लगा। पिता का दिल फिर से खिल उठा, और केशव जानता था कि यह बदलाव सिर्फ बगीचे में ही नहीं, बल्कि उन दोनों के रिश्ते में भी आया था।