भगवान् श्री गणपति गणेश जी की आरती – (Ganesh Ji Ki Aarti)

प्यारे दोस्तों, भगवान विघ्नहर्ता गणपति गणेश जी की आरती (Aarti of Lord Ganesha) बहुत ही सुन्दर और मनभावन है। यदि कोई मनुष्य सच्चे दिल से गणेश जी को याद करे या अपने पास बुलाए तो अवश्य ही गणपति जी उनको दर्शन देते हैं। हमारे सभी दुखों का नाश करने वाले गणेश जी की गाथा अत्यंत प्रभावशाली है और बहुत ही जल्द प्रसन्न होते हैं भगवान गणेश जी। इनका आशीर्वाद लेने के लिए हमारे पास ऐसे तो अनेक साधन हैं और उनमें से एक साधन गणेश जी की आरती के रूप में है। तो आइए, गुणगान करें:-

“जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा,
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा…

एक दन्त, दया वन्त, चार भुजा धारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी,
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा…

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा,
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा…

अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया,
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा…

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा,
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा…”

बोलो, जय गणपति गणेश भगवान की जय!

आप सभी पर, भगवान गणेश जी की कृपा सदैव बनी रहे।


जानिए किस प्रकार जन्म हुआ भगवान कार्तिकेय का सिर्फ भगवान शिव की ऊर्जा से – Bhagwan Kartikeya

एक समय की बात है जब महादेव अपने ध्यान में लीन बैठे थे और वहीँ दूसरी तरफ माता पार्वती महादेव से मिलने और बात करने के लिए उत्सुक हो रहीं थीं। फिर अचानक माता महादेव के पास आयीं और उनसे कहा की मैं आपकी अर्धांगिनी हूँ परन्तु उसके साथ साथ में एक नारी भी तो हूँ और एक नारी तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक उसे संतान की प्राप्ति न हो। मुझे एक संतान का अनमोल उपहार देने की कृपा कीजिये स्वामी।

यह सुन कर महादेव ने कहा की आपको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी किन्तु देवेश्वरी होने के नाते आपको यह भी ज्ञात होगा की हमारे प्रत्येक कार्य का एक मात्र उदेश्य जगत कल्याण ही होता है। आपको जो संतान प्राप्त होगी वह केवल आपके लिए ही नहीं अपितु समस्त संसार के लिए उपहार स्वरुप ही होगा। यह सुन कर माता पार्वती बहुत खुश हुईं और कहा की यदि ऐसा है तो यह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात होगी।

वहीँ दूसरी ओर एक राक्षस जिसका नाम ताड़कासुर था वह कई वर्षों से भगवान ब्रह्मदेव की तपस्या में लीन था। तब एक दिन ब्रह्मदेव ताड़कासुर से प्रसन्न हो कर उसे वरदान देने पहुँच जाते हैं और कहते हैं की मांगो क्या मांगते हो। तब ताड़कासुर उनसे ऐसा वरदान मांगता है जो देना उनके वश में नहीं होता वह अमृत्व का वरदान चाहता है जिससे की उसकी कभी भी मृत्यु न हो सके। ब्रह्मदेव ऐसा करने से मना करते हैं की यह मेरे अधिकार में नहीं है कृपया तुम कुछ ओर मांगो तो मैं दे सकता हूँ। यह सुन कर ताड़कासुर क्रोधित हो उठता है ओर कहता है की क्या लाभ आपके ब्रह्मदेव होने का और क्या लाभ मेरे इतनी घोर तपस्या करने का ब्रह्मदेव।

ब्रह्मदेव कहते हैं की अमृत्व का वरदान तुम्हे स्वयं महादेव भी नहीं दे सकते। तब ताड़कासुर के मस्तिष्क में एक योजना जन्म लेती है और वह कहता है की मैं आपको दुविद्या में नहीं डालूंगा अगर आप मुझे यह वरदान नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं लेकिन आप मुझे एक वरदान तो दे सकते हैं न की मात्र और मात्र महादेव की ऊर्जा से उत्पन्न उनका पुत्र ही मेरा वध कर सके। ब्रह्मदेव हैरान होते हुए कहते हैं की यह कैसे संभव है की केवल पुरुष की ऊर्जा से संतान उत्पन्न हो सके यह तो असंभव है। ताड़कासुर क्रोध में कहता है की आप ऐसा नहीं कर सकते हैं क्यूंकि आपने वचन दिया है मुझे। ब्रह्मदेव को विवशतापूर्ण कहना पड़ता है तथास्तु।

बस फिर क्या था ऐसा होते ही ताड़कासुर ऐलान कर देता है की अब पूरे जगत में उसका ही राज होगा और वह सभी देवताओं का भी अंत करेगा। तब देवराज इंद्र बृहस्पति देव से पूछते हैं की ऐसा कैसे संभव हो सकता है की केवल महादेव की ऊर्जा से पुत्र उत्पन्न होगा। बृहस्पति देव कहते हैं की महादेव तो जगत पिता हैं और वह सब जानते हैं हमें उनके पास जाना चाहिए और इसके लिए समाधान करना चाहिए। तब सभी देवता महादेव के पास जा कर कहते हैं की हमें इस मुसीबत से निकालिये क्यों की ब्रह्मदेव के वरदान से ताड़कासुर केवल आपके पुत्र से ही मरेगा जिसमें माता पार्वती की कोई भी भूमिका न हो।

महादेव भी चिंतित होते हैं और सोचते हैं की माता पार्वती ने भी उनसे संतान की उपेक्षा की है। तब सभी देवगन उनसे कहते हैं की आप हमें यह वरदान दीजिये की आपके और माता पार्वती की ऊर्जा से कभी कोई भी संतान जन्म नहीं लेगी जिससे की हम सबका और जगत का विनाश बच सके क्योंकी अगर ऐसा हुआ तो ताड़कासुर का विनाश संभव नहीं होगा। महादेव तो दयालु हैं और जगत कल्याण ही उनका प्रथम कार्य है वह इतना सुन कर देवों को वरदान दे देते हैं की ऐसा ही होगा। इतना सुन कर माता पार्वती क्रोधित हो जातीं हैं और विकराल रूप लेने की तरफ बढ़ती हैं तभी महादेव उनको रोकते हैं।

माता कहतीं हैं कैसा दुर्भाग्य है यह मेरा देवों ने मुझसे मेरा माता बनने का अधिकार छीन लिया हैं। महादेव कहते हैं की आप तो मेरी शक्ति हैं आप मुझसे अलग कहाँ हैं देवी हम तो एक ही हैं इसलिए मेरा पुत्र आपका भी पुत्र होगा। समस्त जगत के माता और पिता हैं हम यहाँ तक की सभी देवता भी हमारी ही संतानें हैं उनकी रक्षा भी हमारा ही कर्तव्य है और जो पुत्र होगा वह मेरे साथ आपका भी पुत्र होगा उमा देवी। आप मुझसे अलग कहाँ हैं। यह सुन कर माता प्रसन्न होती हैं और पूछती हैं की क्या ऐसा सच में संभव हैं? महादेव कहते हैं की अवश्य संभव है मुझ पर विश्वास रखिये प्रिय हमारी प्रथम संतान के जन्म का समय आ गया है।

तब भगवान शिव के रुद्राक्ष और समस्त देवताओं के शक्तियों से जन्म होता है भगवान कार्तिकेय का।

भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं की मुझसे उत्पन्न ऊर्जा को जो संभाल सके वह सरकान्तु आपका ही तो स्वरुप है। अब तो आपको विश्वास हो गया न उमा की मेरा यह पुत्र आपका भी पुत्र होगा।

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